Sunday, April 27, 2025
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थलीसैणः गरीब बाॅबी को है इलाज के लिए मदद की दरकार

गरीबी हालातों से जूझती एक बेवश मां पैसों के अभाव में नही करवा पा रही अपने कलेजे के टुकड़े का उपचार-

पौड़ी गढ़वाल :- लाचारी और मुफलिसी कभी कितना कुरूप चेहरा लेकर सामने आती है कि उससे आंख मिलना दुरूह हो जाता है। एक छोटी सी चोट किसी मासूम और किसी मां के कलेजे के टुकड़े को दिव्यांग बना देती है। बिजली की तरह दौड़ने वाला मासूम आज लाचार बना है सिर्फ कुछ पैसों के इलाज न मिलने के कारण। यहां जिक्र गडसारी गांव की बीना देवी के संघर्ष की हो रही है। जिसने एक छोटी सी चोट के चलते अपने मासूम बच्चे को अपने आंखों के सामने दिव्यांग होते देखा। लेकिन क्या करें हालात कभी ऐसे नहीं रहे कि वह उसका उपचार करा सके। अपने दिव्यांग लाडले बाॅबी के साथ मां बीना देवी।

जनपद पौड़ी के अंतर्गत थलीसैण ब्लाक की चोपड़ा कोट पट्टी के गडसारी गांव। यहीं की रहने वाली है बीना देवी। पति मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। मेहनत मजदूरी कर परिवार की आजीविका चलती है। उनका एक बालक है बौबी। यह बालक जब छह साल का तो उसके पांव में चोट लगी। अस्पताल के नाम पर करीब साठ से सत्तर किमी दूर बेस अस्पताल श्रीनगर में उसे उपचार के लिए बीना स्वयं ही लाई। लेकिन बाॅबी का पांव ठीक नहीं हुआ। लेकिन बीना की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह उसे फिर से अस्पताल ले जा सके। हालात जब और खराब हो गए तो वह अपने बच्चे को लेकर मायके में रहने लगी। ससुराल तो ससुराल मायके में भी वही संघर्षों का जीवन। दोनों जगहों पर सिर्फ पेट पालने तक का इंतजाम हुआ। बेटे के उपचार की स्थितियां कभी नहीं बनी। अच्छा खासे बच्चे का अब किसी कैंप में दिव्यांग प्रमाण पत्र ही बन पाया है। उससे अधिक कुछ नहीं हो पाया।

बीना देवी कहती हैं कि पति की स्थिति ठीक नहीं है। बच्चे का इलाज कहां से कराते। अब सब नियति छोड़ दिया है। उन्होंने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि सरकार या किसी संस्थान की ओर से कोई मदद होगी और बच्चे का जीवन संवर जायेगा। लेेकिन यह सब ख्यालों में ही चलता रहा। हकीकत नहीं हो पाया। यदि आज भी इस बच्चे के इलाज की दिशा में प्रयास किए जाएं तो उम्मीद है कि उसकी दिव्यांगता खत्म हो जाए। और बीना देवी ने तो अब हालातों में ही खुद को ढाल सा दिया है। बाॅबी दसवीं में पढ़ता है। लेकिन गरीबी के कारण हासिल हुई दिव्यांगता ने उसे शरीर के साथ ही मन से भी कमजोर कर दिया है। वह दौड़ना चाहता है। फुटबाॅल खेलना चाहता है। सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहता है। लेकिन गरीबी के इस तोहफे ने इस मासूूम के सपने भी तार तार कर दिए हैं।

यह परिवार अनुसूचित जाति से है। इनके लिए केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से कई कल्याणकारी योजनाएं पहले से ही संचालित होती रही हैं। लेकिन बीना देवी जैसे गरीब और मजबूर परिवारों का संकट शायद कभी खत्म नहीं होता। और हवा में ही योजनाओं की सफलता के शिखर चूम जाती हैं।

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