यमकेश्वर

उत्तराखंड ! यमकेश्वर में यह गाँव पिछली चार पीढ़ियों से राजस्व मान्यता तथा सरकारी सुविधाओं की बाट जोह रहा है

,✒️उमाशंकर कुकरेती

उत्तराखंड -: जिला पौड़ी गढ़वाल के अंतर्गत यमकेश्वर ब्लाक में गंगा नदी के किनारे बसे ग्राम सभा कोठार के कुनाँऊ गॉंव जिसमें अधिकतर इसी पहाड़ी क्षेत्र के लोगो की बसावट है, सदियों से यहाँ रह रहे लोगों की सभी सरकारों ने अनदेखी की है और अभी तक मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा है। इन लोगों ने मेहनत करके इस बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया है और राजनीतिक तिकड़मबाजी से दूर सीधे सादे ये पहाड़ी लोग अपनी मेहनत में ही अपनी भलाई समझते है ।

सिर्फ चुनाव के समय नेताओ का हजूम जरूर यहाँ लगता है, और भारी भरकम वादे करके सब इनकी पीड़ा भूल जातें हैं । यह गांव गंगा के किनारे बहुत ही रमणीक जगह पर कृषि, पशुपालन, योग, पर्यटन आदि अन्य स्वरोजगारों की अपार संभावनाओं के साथ दशकों से बसा हुआ है लेकिन आलम यह है कि इस गांव के लोगों को उपरोक्त स्वरोजगार हेतु सरकारी लोन भी नहीं मिल पाता है !

वनविभाग ने अभी तक इस गांव के सीमांकन की प्रक्रिया भी शुरू नहीं की है जबकि *उत्तराखंड शासन की अधिसूचना संख्या -130/X-2-2015-19(I) 2013 दिनांक 18 अप्रैल 2015 में स्पष्ट है कि ऑल एरिया एक्सक्लूडेड फ्रॉम द ग्रास बाउंड्रीज ऑफ़ राजाजी नेशनल पार्क इन इट्स फाइनल नोटिफिकेशन नंबर 3807/ 10-2- 2013 -19 (7) 2002 देहरादून दिनांक 14 सितंबर 2013 एंड ऑल द रिवेन्यू विलेजेस एंड हैमलेटस् एज चाक्स् विद्इन रिजर्व्ड फॉरेस्ट ऑफ द बफर जोन विल बी आउटसाइड द परव्यू ऑफ दिस नोटिफिकेशन, इस प्रकार 14 हेक्टेयर कुनाँऊ गोठ में राजाजी टाइगर रिजर्व की परिधि से बाहर है !* इस तथ्य की पुष्टि जिलाधिकारी गढ़वाल ने अपने पत्र संख्या:107615-विदेशी मदिरा दुकान-चीला कुनाँऊ/2021-22 दिनांक 20 दिसम्बर 2021 में भी की है, फिर भी वन विभाग के नाम पर इस गांव को सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा गया है ।

ये लोग कई पीढ़ियों से यहाँ बसे है। पहले इस क्षेत्र में मलेरिया का बहुत ज्यादा प्रकोप रहता था तथा यहां जंगली जानवर जैसे सुअर, लोमड़ी, खरगोश, हिरन, अजगर, लकड़बग्घा, हाथी, बाघ, मोर आदि बहुतायत मात्रा में रहते थे तब यहाँ मानव आवाजाही बहुत कम होती थीं, लेकिन कालांतर में बैराज- चीला शक्ति नहर बनने से यह गांव मुख्य वन क्षेत्र से पृथक होकर गंगा नदि और नहर के बीच एक टापू की तरह से बसा हुआ है जिससे जंगली जानवरों की आवाजाही भी बहुत कम हो गई है ! यहाँ नहर के किनारे से ऋषिकेश- बैराज -चीला- हरिद्वार रोड: हरिद्वार, कोटद्वार एवं यमकेश्वर के डांडामंडल क्षेत्र में जाती है, जो कि पर्यटन एवं चार धाम यात्रा के दौरान भारी यातायात को सुगमता से चलाने हेतु बहुत ही सुंदर एवं बाईपास मार्ग है !

 

विडंबना देखिये कि जिस गांव में चीला विद्युत ग्रह (पावर हाउस) के लिए बिजली बनाने हेतु गंगा नदि पर कुनाँऊ बैराज डैम, बैराज सरोवर एवं शक्ति नहर का उद्गम स्थल है उस गांव में ग्राम वासियों के लंबे जन आंदोलन के उपरांत दशकों बाद नवंबर 2013 में विद्युतीकरण संभव हो पाया था !

इसी प्रकार दशकों से गांव की मुख्य सड़क हेतू प्रयासरत् ग्रामीणों ने 04 जुलाई 2018 को तत्कालीन विधायक श्रीमती रितु खंडूरी भूषण जी के सहयोग से विधायक निधि एवं श्रमदान करके RCC सड़क का निर्माण किया था लेकिन धनराशि की कमी के कारण यह सड़क आधी ही बन पाई थी और गांव की आधी सड़क आज भी गड्ढों व बरसात में कीचड़-पानी से पटी पड़ी रहती हैं !

अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए गाँव के बुजुर्गों ने बताया कि वे 1960 से 1970 तक अपने खर्चे पर गाँव के विषय में पैरवी करने परगना मजिस्ट्रेट लैंसडाउन के सम्मुख उपस्थित होने के लिए तारीख पर जाते थे और उस जमाने में यातायात के साधनों की अनुपलब्धता के कारण उन्हें 2 दिन पैदल चलकर लैंसडाउन जाना पड़ता था ! तब जाकर गांव के लोगों को लीज पट्टे दिए गए ! इस इस बात की पुष्टि हेतु उनके पास पर्याप्त साक्ष्य भी हैं ! यह बुजुर्गों की मेहनत का परिणाम ही है कि यह गांव दशकों से पारंपरिक रूप में यहां बसा हुआ है !

यहां के ग्रामवासी दशकों पहले उत्तरप्रदेश के जमाने से ही अपने हक एवं मूलभूत सुविधाओं हेतु संघर्षरत हैं ! हर पीढी के कुछ जुझारू नौजवानों का वर्तमान व भविष्य इस संघर्ष की भेंट चढ़ता चला आ रहा है !

अब 18 मई 2022 को एक सराहनीय पहल *”विधायक आपके द्वार”* के तहत वर्तमान विधायक महोदया श्रीमती रेणु बिष्ट जी को ग्रामवासियों ने अपनी समस्याओं से अवगत कराकर अपने गांव के विकास की आश बांधी है, जिसमें वन विभाग द्वारा गांव का सीमांकन, सड़क व गलियों का पक्कीकरण, स्ट्रीट लाइटों की व्यवस्था एवं गंगा तट पर बाढ़ के पानी को रोकने हेतु तटबंध आदि शामिल है !

बताते चलें कि उत्तरप्रदेश में ऐसे ही पारंपरिक रूप से बसें गांवों ( भवानीपुर, तोटिया ढाकिया और बिछिया) को नियम संगत प्रक्रिया के माध्यम से राजस्व ग्राम घोषित कर दिया गया है !

कुनाँऊ गांव के वासियों ने भी वन अधिनियम 2006 के तहत अपने दावे जुलाई 2020 में तथा उससे पूर्व वर्षों में भी प्रस्तुत किए थे, लेकिन उन पर भी आज दिन तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है !

विरोधाभास देखिए कि एक दो दशक पहले हमारे देश में अवैध तरीके से घुसपैठ करने वाले दूसरे देशों के लोगों को बसा कर उन्हें आसानी से वैध सरकारी मान्यता दे दी गई है और इसी देश के वासी होते हुए भी लगभग दो सदी से पारंपरिक रूप में बसे इस गांव को अभी भी सरकारी मान्यता हेतू संघर्ष करना पड़ रहा है !

वैश्विक महामारी कोरोना ने समस्त विश्व की चिकित्सा प्रणाली को झकझोरते हुऐ मानव जाति को पर्यावरण एवं गांवों की महत्ता के विषय में पुनः विचार करने हेतू विवश कर दिया है ! इस महामारी के दौरान शहरों की अपेक्षा गांवों को अधिक सुरक्षित माना गया ! इसीलिए किसी महापुरुष ने कहा था ‘असली भारत गांवों में बसता है’ अधिकांश ग्रामवासी किसान होते हैं । कठोर परिश्रम, सरल स्वभाव और उदार हृदय उनकी विशेषताएं हैं ! गांव परंपरा एवं संस्कृति के वाहक होते हैं ! सरकार भी गांव से पलायन रोकने हेतु विभिन्न योजनाओं का संचालन कर रही है लेकिन इसके ठीक उलट इस गांव को सरकारी मान्यता ना मिलना कहीं ना कहीं संबंधित विभागों की आपसी तालमेल की कमी को दर्शाता है जो अजीब सा लगता है !

आजादी के 75 साल के उपलक्ष में संपूर्ण देश की तरह यह गांव भी आजादी का अमृत महोत्सव पूरे हर्षोल्लास एवं अभिमान के साथ मना रहा है लेकिन सही मायनों में यह गांव असुविधाओं की परतंत्रता रूपी बेडि़यों से आज भी आजाद नहीं हुआ है !

 

इसी गाँव के एक फौजी भाई ने बचपन के अन्य कष्टमय दिनों को याद करते हुए नम आंखों व भारी आवाज में बताया कि कैसे गांव के सभी बच्चे खेलने हेतू भी कष्ट उठाते थे और वन विभाग, जंगली जानवरों, व घनी झाडियों के डर से मौसमानुसार चार-पाँच जगहों में बदल-बदल कर फुटबाल, क्रिकेट व अन्य पारंपरिक खेल खेला करते थे, अस्तु विधायक, वन विभाग व सरकार से उनकी यह मांग भी है कि गांव के सीमांकन के समय ग्रामीण बच्चों के लिए खेलकूद हेतू गांव से लगते हुऐ ही एक क्रीड़ा स्थल ( मिनी स्टेडियम ) की भूमी का सीमांकन भी किया जाए !

फौजी भाई ने बताया कि स्वरोजगार के अनुकूलित यह गांव सरकारी असुविधाओं से प्रायोजित गरीबी व बेरोजगारी की मार भी झेल रहा है जिसके निर्मूलन हेतू गांव के मध्य से होते हुऐ सिचाई के लिये नहर की आवश्यकता भी है, जिससे कृषि एवं पशुपालन आदि स्वरोजगार योजनाओं को पंख लग सके !

आगे फौजी भाई ने गर्व के साथ बोला कि 03 मई 1999 से शुरू हुऐ कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय थल सेना में मेरी सर्विस मात्र चार साल की थी और मैं सशस्त्र सेना चिकित्सा महाविद्यालय (Armed Forces Medical College-AFMC) पूणे में डी-फार्मा प्रथम वर्ष का प्रशिक्षणार्थी था ! 1999 जुलाई प्रथम सप्ताह में हमारे 55 जवानों के बैच को नर्सिंग असिस्टेंट के रूप में युद्ध में जाने हेतू तैयार रहने के आदेश मिल चुके थे ! मैं पूरे जोश जुनून और जज्बे के साथ देश तथा युद्ध की वस्तु स्थिति, कुल देवी- देवताओं की स्तुति, घर परिवार एवं गांव की परिस्थिति आदि की उधेड़बुन में लगकर व समाचारों में सरकार द्वारा शहीदों को दिए जाने वाले अभूतपूर्व सम्मान को देखकर सोचता था कि युद्ध क्षेत्र में विलक्षण रण कौशल दिखाते हुए अगर मुझे भी वीरगति को प्राप्त होने का सौभाग्य मिला तो शहीद के गांव के नाम पर ही सही सरकार जरूर मेरे कुनाँऊ गांव की सुध लेगी ! फिर अफसोस जताते हुए बोले कि शायद मैं इतना सौभाग्यशाली नहीं था क्योंकि हमें मूवमेंट का ऑर्डर मिलता इससे पहले ही 26 जुलाई 1999 को पाकिस्तान इस छद्म युद्ध में परास्त हो चुका था और टाइगर हिल पर तिरंगा लहरा चुका था !

इस फौजी भाई ने अपने गांव की व्यथा इस प्रकार अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त की है –

गौवंश के चारागाह से बसी हूँ,
पतित पावनी गंगा मां से सटी हूं,
मणिकूट पर्वत की तलहटी हूँ !

.जब था अंग्रेजों का राज,
और नहीं था बैराज,
तमेड़ो1 के थपेड़ों से,
असुविधाओं की खरीद हूँ,
मैं चुगान की वो पुरानी रसीद हूं !

वन विभाग का पुराना प्यार,
राजस्व की दूर की रिश्तेदार,
कष्टों और यादों की गठरी समेटे हूँ,
विश्वास व उम्मीदों की चुनरी लपेटे हूँ,

प्रकृति का आशीष
बुजुर्गों की कोशिश
युवाओं की टीस
सिंधुघाटी की सभ्यता सी,
मैं सतत् संघर्ष की कहानी हूँ,
कभी पांवों में छाले
तो कभी छालों में पाँव हूँ,
दस्तावेजों में गोठ2 वाला गांव हूँ !

भवानी की करूणा,
भोले की कृपा
अर भूम्या3 की छाँव हूँ ,
हाँ मैं अपने दर्द में भी
बल4 मुस्कुराता हुआ
…कुनाँऊ गाँव हूँ 🏞️💕

-सूबेदार सुरेश पयाल
9468822998,
9758148810
कुनाँऊ गाँव,
ग्राम सभा कोठार,
यमकेश्वर ब्लाक,
पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड
payal2780@gmail.com
…………………………..
1तमेड़- गंगा नदी पार करने के लिए तेल के टीनी कनस्तरों से बना बेड़ा !

2गोठ-घेरा व झोपड़ी जिसमें चरने के बाद गायों को रखा जाता है !

3भूम्या-ग्राम देवता (श्री भूूम्या ठाकुर जी महाराज /भूम्याल देवता/वन देवता) जिनकी प्रति दिन के साथ-साथ प्रतिवर्ष अगस्त माह में पारंपरिक रूप से ग्रामीण भव्य पूजा करते हैं !

4बल-उत्तराखंड में वाक्यों को जोड़ने और किसी बात पर जोर देने हेतू सामान्यतः प्रयुक्त होने वाला प्रचलित शब्द !

*संदर्भ: उत्तराखंड में विश्वप्रसिद्ध योग नगरी ऋषिकेश से महज 5 किलोमीटर, एम्स ऋषिकेश से 500 मीटर, हरिद्वार से 23 किलोमीटर और राजधानी देहरादून से महज 45 किलोमीटर दूर पारंपरिक रूप से कृषि एवं पशुपालन करने वाला कुनाँऊ एक ऐसा गांव है जहां पहाड़ी लोग सदियों पहले गोठ बना कर गायों को चुगाते थे, फिर कालांतर में इन लोगों ने निरपट बंजर भूमि में मेहनत करके खेती-बाड़ी करनी शुरू की और अब पिछली चार पीढ़ियों से पूरा गांव राजस्व मान्यता तथा सरकारी सुविधाओं की बाट जोह रहा है !*

🇮🇳🏡🏞️📝🙏

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